Rajasthan Forest Report-2021
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राजस्थान में वन संसाधन :- परिचय
वनों का क़ानूनी/प्रशासनिक वर्गीकरण-
प्रदेश में कुल अभिलेखित वन क्षेत्र (Recorded Forest Area) 32864.62 वर्ग किमी (राज्य क्षेत्रफल का 9.60%) है। राजस्थान वन अधिनियम- 1953 के प्रावधानों के अनुसार वैधानिक दृष्टि से उक्त वन क्षेत्र को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है-
क्र.स. | वैधानिक स्थिति | क्षेत्रफल (वर्ग किमी) | प्रतिशत |
1 | आरक्षित वन (Reserve Forest) | 12176.24 | 37.05 |
2 | रक्षित वन (Protected Forest) | 18564.45 | 56.49 |
3 | अवर्गीकृत वन (Unclassed Forest) | 2123.93 | 6.46 |
Total | 32864.62 | 100 |
1. आरक्षित वन-
- इन वनो में लकड़ी काटना,पशुचारण एवं आखेट/शिकार पर पूर्णतः प्रतिबंध होता है।
- इनका सर्वाधिक विस्तार उदयपुर में है।
2. रक्षित/संरक्षित वन-
- इनमें लकड़ी काटने एवं पशुचारण पर सिमित छूट होती है।
- इनका सर्वाधिक विस्तार बारां में है।
3. अवर्गीकृत वन-
- इन वनों में लकड़ी काटने एवं पशुचारण पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।
- इनका सर्वाधिक विस्तार बीकानेर जिले में है।
देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा वन एवं वन संसाधनों के आंकलन के लिए 1987 से प्रत्येक 2 वर्ष पर सुदूर संवेदन (Remote Sensing) आधारित देश में वनों एवं वृक्षों की स्थिति पर ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट’ जारी की जाती है। इसी क्रम में भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 जारी की गयी जो इस शृंखला की 17वीं रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में वनों के आंकड़े निम्न है –
राज्य का वानिकी परिदृश्य-
• राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का- | 7.42 % |
• प्रति व्यक्ति औसतन वनावरण एवं वृक्षावरण | 0.037 हेक्टेयर। |
• राज्य का कुल अभिलेखित वन (Recorded forest Area) | 32864.62 वर्ग किमी। |
• राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के सापेक्ष अभिलेखित वन भूमि | 9.60 % |
• राज्य का कुल वनावरण (Forest Cover) | 16655 वर्ग किमी। |
⇒ अभिलेखित वन के अंतर्गत वनावरण | 12560 वर्ग किमी। |
⇒ अभिलेखित वन के बाहर वनावरण | 4095 वर्ग किमी। |
• राज्य का वृक्षावरण (Tree Cover) | 8733 वर्ग किमी। |
• राज्य का कुल वनावरण एवं वृक्षावरण (Total Forest Cover & Tree Cover) | 25388 वर्ग किमी। |
• राज्य में अभिलेखित वन का कुल क्षेत्रफल 32864.32 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 9.60 % है।
• राज्य का कुल वनावरण एवं वृक्षावरण 25388 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.42 % है।
District wise Forest Cover in Rajasthan-
राजस्थान में वन आच्छादन-
श्रेणी | क्षेत्रफल (वर्ग किमी) | भौगोलिक क्षेत्रफल का प्रतिशत |
अत्यधिक सघन वन (VDF) | 78.15 | 0.02 |
मध्यम सघन वन (MDF) | 4368.65 | 1.28 |
खुले वन (Open Forest) | 12208.96 | 3.57 |
Total | 16654.96 | 4.87 |
झाड़ी (Scrub) | 4808.51 | 1.41 |
राज्य में सर्वाधिक वन विस्तार वाले जिले-
क्षेत्रफल के अनुसार | प्रतिशत अनुसार |
1 | उदयपुर | 2753 km² | 1 | उदयपुर | 23.49 % |
2 | अलवर | 1196 km² | 2 | प्रतापगढ़ | 23.24 % |
3 | प्रतापगढ़ | 1034 km² | 3 | सिरोही | 17.49 % |
4 | बारां | 1010 km | 4 | करौली | 15.28 % |
राज्य में न्यूनतम वन विस्तार वाले जिले-
क्षेत्रफल के अनुसार | प्रतिशत अनुसार |
1 | चूरू | 77.69 km² | 1 | जोधपुर | 0.48 % |
2 | हनुमानगढ़ | 92.97 km² | 2 | चूरू | 0.56 % |
3 | जोधपुर | 109.25 km² | 3 | जैसलमेर | 0.84 % |
4 | श्री गंगानगर | 115.09 km | 4 | बीकानेर | 0.92 % |
राजस्थान में वनो का भौगोलिक वर्गीकरण-
भौगोलिक वर्गीकरण के आधार पर वनो को पांच भागों में बाँटा गया है-
- उष्णकटिबंधीय कंटीले/मरुस्थलीय वन
- उष्णकटिबंधीय धोंक/शुष्क पर्णपाती वन
- उष्णकटिबंधीय शुष्क मानसूनी/मिश्रित पतझड़ वन
- उष्णकटिबंधीय सागवान/सवाना वन
- उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
उष्णकटिबंधीय कंटीले/मरुस्थलीय वन-
- वर्षा- 30- 60 cm
- वन क्षेत्र- 6.26 %
- विस्तार- शुष्क मरुस्थली क्षेत्र (जैसलमेर,बीकानेर,जोधपुर,बाड़मेर)
- प्रमुख वन- नागफनी,एलोवेरा,कंटीली झाड़ियाँ। घास- सेवण,धामण,मुराल,अंजन
- महत्व- मरुस्थलीकरण रोकने में
उष्णकटिबंधीय धोंक/शुष्क पर्णपाती वन-
- वर्षा – 30-60 cm
- वन क्षेत्र- 58.11 %
- विस्तार- अर्द्ध शुष्क मरुस्थली क्षेत्र (लूणी बेसिन,नागौर,शेखावाटी,करौली एवं सवाईमाधोपुर,जयपुर,टोंक)
- प्रमुख वन- खेजड़ी,रोहिड़ा,बबूल,बैर,कैर,पीपल,नीम,अशोक
- महत्व- ईंधन की लकड़ी का स्रोत
उष्णकटिबंधीय शुष्क मानसूनी/मिश्रित पतझड़ वन-
- वर्षा – 50-80 cm
- वन क्षेत्र- 28.38 %
- विस्तार- अलवर,भरतपुर,धौलपुर,करौली,उदयपुर,चित्तौडग़ढ़,भीलवाड़ा,राजसमंद
- प्रमुख वन- साल,सागवान,शीशम,आम,चंदन,ढाक(पलाश),गूलर,सालर,तेन्दु,धोकड़ा
- महत्व- आर्थिक रूप से उपयोगी।
उष्णकटिबंधीय सागवान/सवाना वन-
- वर्षा –75-110 cm
- वन क्षेत्र- 6.86 %
- विस्तार- मुख्यतः बांसवाड़ा,डूंगरपुर,प्रतापगढ़,कोटा,झालावाड़
- प्रमुख वन- गूलर,महुआ,तेन्दु
- महत्व- औद्योगिक क्षेत्र में उपयोगी।
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन-
- वर्षा – 150 cm
- वन क्षेत्र- 0.39 %
- विस्तार- माउन्ट आबू
- प्रमुख वन- डिकल्पटेरा आबू ऐंसिस (अम्बरतरि),जामुन एवं बांस
- महत्व- जैव विविधता अधिक पायी जाती है।
राजस्थान की प्रमुख वन सम्पदा-
खेजड़ी-
- वैज्ञानिक नाम- प्रोसोपिस सिनेरेरिया
- यह पश्चिम राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है।
- 31 oct 1983 को इसे राज्य वृक्ष घोषित किया गया।
- दशहरा के अवसर पर इसकी पूजा की जाती है।
रोहिड़ा-
- वैज्ञानिक नाम- टीकोमेला अण्डुलेटा
- सर्वाधिक पश्चिम राजस्थान में पाया जाता है।
- 1983 में राज्य पुष्प घोषित।
पलाश/ढाक-
- वैज्ञानिक नाम- ब्यूटिया मोनोस्पर्मा
- सर्वाधिक- राजसमंद
- इसे “जंगल की ज्वाला” कहा जाता है।
- उपयोग- पत्तल-दोने,कसरिया रंग बनाने में।
महुआ-
- वैज्ञानिक नाम- मधुका लोंगीफोलिया
- इसे आदिवासियों का कल्प वृक्ष कहा जाता है।
- सर्वाधिक- डूंगरपुर
- उपयोग- शराब,औषधि बनाने में
तेंदू-
- सर्वाधिक- प्रतापगढ़,चित्तौड़गढ़
- इसकी पत्तियों का उपयोग बीड़ी बनाने में किया जाता है।
- इसकी पत्तियों को टिमरू कहा जाता है।
राजस्थान में वन नीतियां-
राष्ट्रिय स्तर पर पहली वन निति 1894 में एवं स्वतंत्र भारत की पहली वन निति 1952 में जारी की गयी। देश में वर्तमान में “वन निति-1988” लागु है। इस वन निति के अनुसार वनों का लक्ष्य निम्न रखा गया है-
- भौगोलिक क्षेत्र – 33 प्रतिशत
- पर्वत- 60 प्रतिशत
- मैदान- 20 प्रतिशत
राजस्थान में वर्तमान में वन निति “राजस्थान राज्य वन निति-2023” लागु है जो 05 जुलाई 2023 को जारी की गयी। इस निति के अनुसार प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 20% भाग पर वन होने चाहिए।
राजस्थान देश सबसे बड़ा राज्य है, जो देश के कुल भू-भाग के 10.41% में विस्तृत है। राज्य में वनावरण कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9.60 % भाग में विध्यमान है। जिसे बढ़ाकर 20 % करना नई वन निति का मुख्य उद्देश्य है।
राजस्थान वन निति-2023-
उद्देश्य-
• वर्तमान प्राकृतिक वनो,वन्य जीव और जैव विविधता की सुरक्षा,संरक्षण,पुनर्स्थापना और प्रबंधन करना जिससे पारिस्थितकी सुरक्षा और पारिस्थितकी तंत्र सेवाओं के प्रवाह के लिए वनो की उत्पादक क्षमता की बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिए योगदान देना।
• वर्तमान में स्थित वन क्षेत्रों में कटाई,पुनर्स्थापना और पुनर्वास उपायों को प्रोत्साहित करके और मौजूदा वन क्षेत्रों के बाहर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वनस्पति आवरण को प्रोत्साहित और विस्तारित करके राज्य में वन/वृक्ष आच्छादन की सीमा को बढ़ाने के लिए साझा भूमि संस्धानों पर वन सुरक्षा और वनीकरण प्रथाओं को बढ़ावा देना,कृषि भूमि पर वानिकी पद्धतियां और उपलब्ध स्थानों पर वृक्षरोपण करना।
• वन और चारागाह आधारित संसाधनों और पारस्थितिक तंत्र सेवाओं के सतत उपयोग के मध्यम से सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना और लोगो आजीविका के अवसरों में सुधार करना।
• उचित प्रबंधन हस्तक्षेपों तथा समकालीन वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के माध्यम से मरुस्थलीकरण सहित भूमि के सभी प्रकार के क्षरण को रोकना एवं वनों,घास के मैदानों और वृक्षारोपण के तहत भूमि की उत्पादकता में सुधार करना।
• विशेष रूप से घास के मैदानों,आर्द्र भूमियों,पवित्र उपवनों,मरुस्थलों जैसे जैव-विविधता से समृद्ध पारिस्थितिक तंत्रो के संरक्षण और प्रबंधन सहित Ex-Situ, In-Situ और गैर स्थानिक संरक्षण उपायों के माध्यम से वनस्पतियों और जीवों की दुर्लभ और लुप्तप्रायः प्रजातियों की वनस्पतिक एवं प्राणियों की विविधता तथा उनके आनुवांशिक संसाधन भंडार (जीन पूल रिज़र्व) को संरक्षित करना।
• जलवायु परिवर्तन शमन तथा अनुकूलन उपायों को वन,वन्यजीवों एवं जैव-विवधता प्रबंधन तथा राजस्थान के वनस्पतिक आवरण के प्रबंधन के साथ एकीकृत करना।
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