राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग/Rajasthan State Election Commission -1994

राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग/Rajasthan State Election Commission 

Rajasthan State Election Commission का संवैधानिक इतिहास – 

  • राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक व स्वतंत्र निकाय है। पंचायती राज संस्थाओं हेतु संविधान के भाग-9 अनुच्छेद 243 K(ट) तथा नगरीय संस्था हेतु संविधान के भाग-9क अनुच्छेद 243 ZA(य क) में राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है। 
  • संविधान निर्माण के समय राज्य निर्वाचन आयोग का कोई प्रावधान शामिल नहीं किया गया था। 73 वें  एवं 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम-1992 के द्वारा प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं एवं नगरीय निकायों के चुनाव निष्पक्ष व समय पर करवाने हेतु अलग से राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान  किया गया।
  • इसी आधार पर राजस्थान में राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 पारित किया गया जो 23 अप्रैल 1994 से लागु हुआ और राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना 17 जून 1994 को की गयी तथा आयोग द्वारा 1 जुलाई 1994 से कार्य करना प्रारंभ किया गया।
  • राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग का प्रमुख राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है। यह एक सदस्य निकाय है,इसमें एक सचिव भी होता है जो राज्य का मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है।
  •  इसका मुख्यालय जयपुर में है। 

नियुक्ति-

राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह से की जाती है। 

कार्यकाल

राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल पद ग्रहण से 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो तक होता है।  निर्वाचन आयुक्त कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व भी राज्यपाल को संबोधित कर त्यागपत्र दे सकता है। 

पद से हटाना-

राज्य निर्वाचन आयुक्त को पद से उसी प्रकार हटाया जाता है जिस प्रकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है अर्थात  संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा । 

सेवा-शर्तें

  • राज्य निर्वाचन आयुक्त की पदावधि,और सेवा-शर्तों,और वेतन-भत्ते का निर्धारण राज्यपाल,विधानमंडल द्वारा निर्मित अधिनियम के आधार पर  किया जाता है। कार्यकाल के दौरान इनमें कोई भी अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता। 
  • राज्य निर्वाचन आयुक्त का वेतन उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान मिलता है। 

राज्य निर्वाचन आयुक्तो कि लिस्ट-

क्र.स.  आयुक्त का नाम  कार्यकाल 
1. श्री अमर सिंह राठौड़ 01.07.1994 – 01.07.2000
2. श्री नेकराम भसीन  02.07.2000 – 02.07.2002 
3. श्री इंद्रजीत खन्ना 26.12.2002 – 26.12.2007
4. श्री अशोक कुमार पांडे 01.10.2008 – 30.09.2013
5. श्री राम लुभाया 01.10.2013 – 02.04.2017
6. श्री प्रेम सिंह मेहरा 03.07.2017 – 03.07.2022
7. श्री मधुकर गुप्ता  14.08.2022 से लगातार 

 राज्य निर्वाचन आयुक्त के कार्य-

  • पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों के चुनावों से पूर्व जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत मतदाता सूचि को अपडेट करना।
  •  चुनाव चिन्ह आवंटन उससे संबंधित विवादों का निपटारा करना। 
  • स्थानीय निकायों (पंचायती राज व नगरीय संस्थाओं) के चुनाव करवाना ( आम चुनाव, उपचुनाव) 
  • के अधीक्षण एवं निरीक्षण तथा सुचारू रूप से निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने हेतु मतदान अधिकारियों की नियुक्ति करना। 
  • विभिन्न राजनीतिक दलों को आकाशवाणी पर राष्ट्रीय प्रसारण के समय चुनाव प्रचार करने हेतु समय एवं तिथि आवंटन करना। 
  • मतदान केंद्र पर हुई किसी अनियमित/संदेहात्मक गतिविधि के आधार पर निर्वाचन आयुक्त उस चुनाव को रद्द कर पुनः निर्वाचन की घोषणा कर सकता है। 
  • चुनाव संबंधी शिकायतों की सत्यता की पुष्टि होने पर चुनाव स्थगित करना। उसके इस अधिकार को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। 
  •  आदर्श आचार संहिता लागू करना।
  •  परिसीमन में आरक्षण संबंधी कार्य।
  •  चुनावी कार्यों को सुचारू रूप से संपन्न करवाने के लिए राज्यपाल से आवश्यक मशीनरी व अन्य सामग्री का आग्रह करना। 
  • निर्वाचन में भाग लेने वाले उम्मीदवारों की योग्यताओं का परीक्षण करवाना एवं योग्य न पाए जाने पर उनको अयोग्य घोषित करना। 

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-

  • निर्वाचन आयोग में एक सचिव होता है जो चुनाव आयुक्त को आयोग के सभी कार्यों के अधीक्षण,पर्यवेक्षण,नियंत्रण व निर्देशन में सहायता प्रदान कर निष्पक्ष चुनाव करवाने में उसकी मदद करता है। सचिव की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा आई.ए. एस. अधिकारियों में से की जाती है। 
  • राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव पहली बार 1960 में पंचायती राज विभाग द्वारा करवाए गए थे। 
  • राजस्थान निर्वाचन आयोग(SEC) द्वारा पहली बार चुनाव 1995 में करवाए गए। इसके बाद हर 5 वर्ष एवं समय से पूर्व विघटन होने की स्थिति में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग ही संपन्न करवाता है। 

73 वां संविधान संशोधन अधिनियम – 1992

देश में स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने हेतु संसद द्वारा 73 वां संविधान संशोधन अधिनियम-1992 पारित किया गया जो 24 अप्रैल 1993 से लागु हुआ।

इस अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 243 – 243 ‘o’ (243 से 243ण) तक कुल 16 अनुच्छेद को संविधान के 9 वें भाग “पंचायत” के रूप में जोड़ा गया तथा 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी, जिसमे पंचायती राज संस्थाओ के 29 कार्यों को सूचीबद्ध किया गया है। 

राजस्थान में यह अधिनियम 23 अप्रैल 1994 से लागु किया गया जिसे हम “राजस्थान पंचायती राज अधिनियम -1994” के नाम से जानते है। इस अधिनियम के संदर्भ में ‘राजस्थान पंचायती राज अधिनियम – 1996’ बनाये गए जो 30 दिसंबर 1996 से लागु किये गए। 

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान-

1. ग्राम सभा (अनु.243 A) –

प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र के लिए एक ग्राम सभा होगी जिसमे उस क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत व्यक्ति होंगे। ग्राम विकास की सभी योजनाओ का क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन ग्राम सभा द्वारा किया जाता है। ग्राम विकास की सबसे छोटी इकाई वार्ड सभा होगी। 

2. पंचायतो का गठन (अनु.-243 B) –

प्रत्येक राज्य में पंचायती राज की त्रि-स्तरीय व्यवस्था (ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत,खंड स्तर पर पंचायत समिति एवं जिला स्तर पर जिला परिषद) होगी। किन्तु जिन राज्यों की आबादी 20 लाख से कम है वहां मध्यवर्ती स्तर का गठन करना आवश्यक नहीं है। 

3. अध्यक्ष एवं सदस्यों का चुनाव (अनु.- 243 C) – 

ग्राम व मध्यवर्ती स्तर पर सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान द्वारा एवं जिला परिषद के सभी सदस्य राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गयी विधि से चुने जायेंगे। 

अध्यक्षों का चुनाव – ग्राम स्तर पर विधान मंडल द्वारा बनाई गयी विधि से एवं मध्यवर्ती व जिला स्तर पर निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से। 

4. आरक्षण (अनु.- 243 D) – 

सभी स्तरों पर SC/ST  हेतु उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आरक्षित होंगी। सभी पदों पर सभी वर्गो में महिलाओ के लिए 1/3 स्थान आरक्षित होंगे। केंद्र द्वारा पंचायती राज संस्थाओ में महिलाओ के लिए 50% आरक्षण के प्रावधान को मंजूरी दे दी है। 

5. कार्यकाल (अनु. 243 E) –

सभी पंचायती राज संस्थाओ का कार्यकाल प्रथम अधिवेशन से 5 वर्ष तक होगा। 

6. सदस्यों की योग्यता (अनु. 243 F )- 

  • किसी भी पंचायती राज संस्था का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष होगी। 
  • सबंधित निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता हो।

7. शक्ति एवं प्राधिकार (अनु. 243 G)

8. करारोपण की शक्ति (अनु. 243 H )

9. राज्य वित्त आयोग (अनु. 243 I ) –

पंचायती राज के वित्तीय सुदृढ़ीकरण हेतु राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष में राज्य वित्त आयोग का गठन करेगा एवं इसके सदस्यों की नियुक्ति करेगा। वित्त आयोग रिपोर्ट राज्यपाल को देगा।

10. लेखाओं की संपरीक्षा (अनु. 243 J )-

राज्य विधान मंडल विधि बनाकर पंचायतों के लेखाओं के परीक्षण के लिए उपबंध कर सकती है। 

11. राज्य निर्वाचन आयोग (अनु. 243 K )-

पंचायतों के चुनाव निष्पक्ष एवं समय पर करवाने हेतु प्रत्येक राज्य में एक निर्वाचन आयोग का गठन किया जायेगा।जिसके अध्यक्ष की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी। इनका कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) होगा। 

12. संघ राज्य क्षेत्रों पर लागु होना (अनु. 243 L )– 

भारत का राष्ट्रपति इस भाग के उपबंधों को किसी भी संघ राज्य क्षेत्र में अपवादों या संशधनो के साथ लागु करने का निर्देश दे सकता है। 

13. भाग-9 के प्रावधान निम्न राज्यों व क्षेत्रों में लागु नहीं होते (अनु. 243 M)-

  • मेघालय,मिजोरम एवं नागालैंड राज्य। 
  • मणिपुर के ऐसे क्षेत्र जहाँ जिला परिषद विध्यमान हो। 
  • पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्र जहाँ दार्जिलिंग गोरखा हिल परिषद विध्यमान है। 
  • अनुच्छेद 244 में उल्लिखित अनुसूचित जाति एवं जनजाति क्षेत्र।

 

Source-   SEC.Rajasthan
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FAQ-

Q.1 –  राज्य निर्वाचन आयोग के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं ?

Ans.–  श्री मधुकर गुप्ता 

Q.2 –  राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग का गठन कब किया गया ?

Ans.-  राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग का गठन 17 June 1994 को किया गया तथा आयोग ने 01.July 1994 से कार्य करना    प्रारम्भ किया। 

Q.3-   राज्य निर्वाचन आयोग का कार्यकाल कितना होता है ? 

Ans.- 05/65 वर्ष जो भी पहले हो। 

Q.4-  राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग है ?

Ans. – एक संवैधानिक संस्था

 

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